Its time to try my hand at a hindi poem. Its based on the story of King Bhagirath (an ancestor of Lord Ram) and how he brought Holy Ganga to earth. I have been awesomely influences by रश्मिरथी. I am planning to write this two stanzas at a time. Why two stanzas, because it takes a lot of time. Writing just these first two stanzas has been really tough for me but hopefully I will have the motivation to finish it off. A caveat is that I will ofcourse take the artistic liberty to mould this tale to my will.
भागीरथी
भाग १
सूरज की पहली किरण देख महाराज सगर का मन मचला
सोचा मेरे इस राज में है राज्य मेरा फूला और फला
यह दृष्टि जहाँ तक जाती है साम्राज्य मेरा ही पाती है
पर सूर्य कहाँ यह उदय हुआ और अस्त कहाँ पर यह होगा
दृष्टि के पार जो सृष्टि है कब नाम वहां उज्जवल होगा
कब सूर्यवंश का शौर्य गीत धरती से गगन तक छाएगा
हिम से लेकर के सागर तक कब विजय ध्वज लहराएगा
कब कुछ ऐसा कर जाऊंगा, की इन्द्र सिंहासन पाउँगा!!
फिर सूर्य की गरिमा से प्रेरित सम्राट ने रण का प्रण लिया
और अश्वमेघ के अश्व से नियति को अपनी बांध दिया