A poem I have composed for my daughter's first birth day
पिछला साल अनगिनत
हसीं यादों के पिटारे
सा लगता है
जब भी इसमे हाथ डालते
हैं, कोई मासूम सी याद
उंगली पकड़ कर
बाहर आ जाती है
कभी फ्रीज के खुले दरवाजे
की ओर, घुटनों के बल,
दौड़ पड़ती है
कभी सोफे के सहारे
खड़ी होती है और धम से
गिर पड़ती है
कभी सुबह सुबह उठ
पापा से अखबार छीन कर
फाड़ देती है
कभी शाम को
मम्मी की उंगली पकड़ कर
नन्हे कदम उठाती है
टीवी का रिमोट, अलमारी के दरवाजें
मम्मी का मोबाइल, पापा की घडी,
मेज पर पड़ा तरह तरह का सामान
घर की हर चीज इन यादों के जरिये
अब कुछ बोलती हैं
कोई याद कई महीनो पुरानी
कोई याद तो पिछले ही हफ्ते की है
पर सब कुछ ऐसा लगता है
जैसे कल ही घटा हो